पंचायती राज, नगर पालिका और केंद्र-राज्यों के संबंध
पंचायती राज, नगर पालिका और केंद्र-राज्य संबंध भारतीय राजनीति के कुछ प्रमुख विषय हैं। एसएससी सीजीएल, सीएचएसएल और अन्य एसएससी परीक्षाओं के लिए ये विषय बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस लेख में पंचायत राज संस्थानों, नगर पालिकाओं और केंद्र-राज्य संबंधों की विस्तृत जानकारी है। इस लेख को सावधानी से पढ़ें|- राज्यपाल, मुख्यमंत्री और राज्य परिषद्
पंचायत राज संस्थापंचायत
1. स्थानीय निकाय पंचायती राज संस्थानों की सबसे बुनियादी कार्यकारी संस्था है।
2. वे क्रमशः 73 और 74 वें संवैधानिक संशोधन 1991 के तहत जोड़े गए थे।
3. जनवरी 1957 में, भारत सरकार ने सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952) और राष्ट्रीय विस्तार सेवा (1953) के कामकाज की जांच के लिए एक समिति नियुक्त की और उनके बेहतर कार्य के लिए उपाय सुझाए। इस समिति के अध्यक्ष बलवंत राय जी मेहता थे। इस समिति की सिफारिशों के कारण ही स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में पंचायती राज संस्था की स्थापना हुई।
4. राजस्थान पहला राज्य था जिसने पंचायती राज संस्था की शुरुवात की। नागौर जिले में 2 अक्टूबर 1959 को प्रधानमंत्री द्वारा इस योजना का उद्घाटन किया गया था। इसके बाद आंध्र प्रदेश ने भी 1959 में इस प्रणाली को अपनाया। धीरे-धीरे, अन्य राज्यों ने भी इसका पालन करना शुरू कर दिया।
5. दिसंबर 1977 में, जनता सरकार ने अशोक मेहता की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की, जिसका कार्य पंचायती राज की घटती क्रियाशक्ति को पुनर्जीवित और मजबूत करना था।
6. जी. वी. के. राव की अध्यक्षता में ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए प्रशासनिक व्यवस्था समिति को योजना आयोग द्वारा 1985 में गठित किया गया था।
7. 1986 में, राजीव गांधी सरकार ने एल. एम. सिंघवी की अध्यक्षता में 'लोकतंत्र और विकास के लिए पंचायती राज संस्थानों के पुनर्जीवन' पर एक समिति नियुक्त की।
8. 73 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम 1992 ने भारतीय संविधान में 'पंचायत' नाम से एक नया भाग-IX जोड़ा। इसमें लेख 243 से 243 (O) के प्रावधान शामिल हैं। इसके अलावा, इस अधिनियम के तहत संविधान में एक नई ग्यारहवी अनुसूची जोड़ी गयी। इस अनुसूची में पंचायत की 29 कार्यात्मक इकाइयाँ शामिल हैं। यह अनुच्छेद 243 (G) से सम्बंधित है।
9. इस संशोधन के द्वारा एक संवैधानिक संस्था बनाई गई जिसे ग्राम सभा कहा जाता है, जो ग्राम स्तर पर एक निकाय है जिसमें पंचायती क्षेत्र में आने वाले गांव के सभी पंजीकृत मतदाता शामिल होते है।
10. 73 वें सविंधान संशोधन ने प्रत्येक राज्य में गांव, मध्यवर्ती और जिला स्तर पर तीन स्तरीय पंचायती संस्था की स्थापना की।
11. पंचायत के सदस्यों को सीधे लोगों द्वारा निर्वाचित किया जाएगा। इसके अलावा, मध्यवर्ती और जिला स्तर की पंचायतों के अध्यक्ष परोक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों के बीच में से उनके द्वारा चुने जाएँगे। हालांकि, गांव पंचायत के अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया राज्य विधानमंडल निर्धारित करता है।
12. प्रत्येक स्तर की पंचायत का कार्यकाल पांच साल होगा। पंचायत की अवधि समाप्त होने से पहले भी इसे समाप्त किया जा सकता है। वर्तमानं पंचायत के समाप्त होने से पहले ही अग्रिम पंचायत के चुनाव करा लिए जाने चाहिए और इसके भंग होने के स्तिथि में छह महीने से पहले चुनाव संपन्न करा लिए जाने चाहिए।
13. मतदाता सूची तैयार करने और पंचायतों के सभी चुनावों के संचालन की निगरानी, निर्देश और नियंत्रण, राज्य निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी होती है।
14. पंचायत स्तर पर चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 21 साल है।
- भारतीय संविधान का निर्माण
15. कुछ राज्य जहां यह अधिनियम पूर्ण रूप से लागू नहीं होता, उनमे जम्मू और कश्मीर, मिजोरम, मेघालय और नागालैंड और कुछ अन्य अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र शामिल हैं।16. यह अधिनियम 24 अप्रैल, 1993 से लागू हुआ और इसके द्वारा भाग नौ और नौ-A;सविंधान में जोड़े गए और 11वी और 12वी दो नई अनुसूची जोड़ी गयीI
नगरपालिका
1. 'शहरी स्थानीय शासन (Urban Local Government)’ का अर्थ है- लोगों द्वारा अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से शहरी क्षेत्र का शासन। शहरी स्थानीय सरकार का क्षेत्राधिकार एक विशिष्ट शहरी क्षेत्र तक ही सीमित होता है जिसे राज्य सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिए निर्धारित किया जाता है।
2. शहरी शासन प्रणाली को 1970 के 74 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के माध्यम से संवैधानिक बनाया गया था। इसमें एक नया भाग - भाग 9-A और एक नई अनुसूची 12 जोड़ी गयी। कुल मिलाकर भारत में आठ प्रकार की शहरी स्थानीय सरकारें हैं
3. 1687-88 में मद्रास में भारत के पहले नगर निगम स्थापित की गई थी।
4. 1726 में मुंबई और कलकत्ता में नगर निगमों की स्थापना की गई थी।
5. लॉर्ड रिपन को भारत में स्थानीय-स्व-सरकार के जनक के रूप में जाना जाता है। इस संबंध में 1882 के उनके प्रस्ताव को स्थानीय स्वशासन का 'मैग्ना कार्टा' कहा जाता है।
6. नोट - भाग 9 (B) को 97 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2012 द्वारा जोड़ा गया था और सहकारी समितियों को संवैधानिक स्थिति प्रदान करता है।
केंद्र-राज्य संबंध
1. संविधान के 245 से 255 के अनुच्छेद का भाग XI में केंद्र और राज्यों के बीच विधायी संबंधों से सम्बंधित है।
2. संविधान में तीन प्रकार की सूचियों का उल्लेख किया गया है।
- संघ सूची
- राज्य सूची
- समवर्ती सूची
4. राज्य सूची उन विषयों के बारे में बताती है जिन पर भारत में 'सामान्य परिस्थितियों में' केवल राज्य सरकार कानून बना सकती है।
- भारतीय संविधान का निर्माण
5. समवर्ती सूची उन विषयों के बारे में बताती है जिन पर दोनों संघ और राज्यों को कानून बनाने का अधिका है।6. संघ सूची में वर्तमान में 100 विषयों शामिल हैं जबकि मूल रूप में 97 विषय शामिल थे।
7. संघ सूची में शामिल कुछ विषय है - रक्षा, बैंकिंग, विदेशी मामलों, मुद्रा, परमाणु ऊर्जा, बीमा, संचार, अंतर-राज्यीय व्यापार और वाणिज्य, जनगणना, लेखा परीक्षा आदि।
8. राज्य सूची में वर्तमान में 61 विषय शामिल जबकि मूल रूप से 66 विषय शामिल थे।
9. राज्य सूची में शामिल कुछ विषय है - सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, कृषि, जेल, स्थानीय सरकार, मछली पालन, बाजार, सिनेमाघर, जुआ आदि।
10. समवर्ती सूची में वर्तमान में 52 विषयों शामिल हैं जबकि मूल रूप से इसमें 47 विषय शामिल थे)।
11. समवर्ती सूची में शामिल कुछ विषय है - आपराधिक कानून और प्रक्रिया, सिविल प्रक्रिया, विवाह और तलाक, आबादी नियंत्रण और परिवार नियोजन, बिजली, श्रम कल्याण, आर्थिक और सामाजिक नियोजन, ड्रग्स, समाचार पत्र, किताबें और छपाई प्रेस, आदि
12. यदि राज्य सभा राष्ट्रीय हित में यह निर्णय लेती है कि संसद को राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बनाना चाहिए, तो संसद उस मामले में कानून बनाने के लिए अधिकर्त हो जाती है। इस तरह के प्रस्ताव को वर्तमान सदस्यों और मतदान के दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित होना चाहिए। यह प्रस्ताव एक वर्ष के लिए लागू रहता है। इसे अनेको बार नवीनीकृत किया जा सकता है, लेकिन एक समय में एक साल से अधिक नहीं । (अनुच्छेद 249)
13. इसके अलावा, देश में आपातकाल की घोषणा की स्थिथि में संसद को राज्य सूची से सम्बंधित मामलों में कानून बनाने का अधिकार है। (अनुच्छेद 250)
14. इसके अलावा, जब दो या अधिक राज्य विधायिका राज्य सूची से सम्बंधित किसी मामले पर कानून बनाने के लिए संसद से अनुरोध करते है, तो संसद उस मामले को विनियमित करने के लिए कानून बना सकती है। ऐसा कानून केवल उन राज्यों पर लागू होता है, जिन्होंने उस प्रस्ताव को पारित किया है। हालांकि कोई अन्य राज्य भी उसी कानून को लागु करने के लिए एक एक प्रस्ताव पारित कर सकती है। इस तरह के कानून को केवल संसद द्वारा संशोधित या निरस्त किया जा सकता है न कि संबंधित राज्यों की विधायिकाओं द्वारा। (अनुच्छेद 252)
15. संसद अंतरराष्ट्रीय संधियों, समझौतों या सम्मेलनों को लागू करने के लिए राज्य सूची के किसी भी मामले पर कानून बना सकती है। (अनुच्छेद 253)
नोट - संसद के पास किसी भी मामले पर कानून बनाने का अधिकार है, जो राज्य सूची या समवर्ती सूची में उल्लिखित नहीं है – इन्हें कानून की अवशिष्ट शक्तियां कहते हैंI (अनुच्छेद 248)
17. सरकारिया आयोग, रजमान्नर आयोग और पूंछी आयोग केंद्र-राज्य संबंधों पर आधारित कुछ महत्वपूर्ण आयोग है।
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