राज्यपाल, मुख्यमंत्री और राज्य परिषद् के मंत्रियो के बारें में नोट्स
राज्यपाल1. राज्यपाल राज्य स्तर पर क़ानूनी तौर पर एक कार्यकारी प्रमुख होता हैं। उसका पद केंद्र केराष्ट्रपति के समान होता है।
2. राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
3. राज्यपाल को किसी एक राज्य या दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त रूप में नियुक्त किया जाता हैं। राज्यपाल के पद के लिए एक व्यक्ति में निम्न योग्यताएं होनी चाहिए:
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
- उसकी आयु 35 वर्ष या उससे अधिक होनी चाहिए।
5. राष्ट्रपति की तरह, राज्यपाल भी कई प्रकार की प्रतिरक्षा और विशेषाधिकार रखता हैं। अपने कार्यकाल के दौरान, उसके खिलाफ किसी भी प्रकार की आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती चाहे वह उसके निजी कार्यों से सम्बंधित ही क्यों नहीं हो।
6. शपथ – राज्यपाल को शपथ संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उसकी अनुपस्थिती में उच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश द्वारा दिलायी जाती है।
7. राज्यपाल का कार्यकाल पाँच साल के लिए होता है। वह राष्ट्रपति की सहमती तक अपने पद पर बना रहता है और उन्ही को अपना इस्तीफा सौंपता है।
8. कोई भी राज्य सरकार अपने सभी कार्यों का निर्वहन औपचारिक रूप से राज्यपाल के नाम पर करती हैं। वही मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है जोकि राज्यपाल की सहमती तक अपना पद ग्रहण करते हैं।
9. वह किसी राज्य के महाधिवक्ता को नियुक्त करता है और उसका पारिश्रमिक निर्धारित करता है। महाधिवक्ता राज्यपाल की सहमती तक अपना पद ग्रहण करता हैं।
10. वह राज्य के निर्वाचन आयुक्त को नियुक्त करता है। निर्वाचन आयुक्त को उच्च न्यायालय के न्यायधीश के समान आधार और समान प्रक्रिया के तहत हटाया जा सकता है।
11. वह राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करता है। हालांकि, उन्हें केवल राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है, न कि राज्येपाल द्वारा।
12. राज्यपाल राज्य की विधानसभा का एक अभिन्न अंग होता है। वह विधानसभा की बैठक या सत्रावसान के लिए आवाहन कर सकता हैं और उसे भंग भी कर सकता हैं।
13. वह राज्य की विधान सभा के सदस्यों में से 1/6 को नामित करता हैं।
14. वह राज्य विधानसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय से एक सदस्य को नामित कर सकता हैं।
15. राज्यपाल किसी विधेयक को स्वीकृति देने से रोक सकता है या पुनर्विचार के लिए उसे वापस भेज सकता है (यदि वह विधेयक धन विधेयक बिल नहीं हैं), और विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए सुरक्षित रख सकता है। (वह धन विधेयक को भी राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए आरक्षित कर सकता है) ।
16. राज्य विधानमंडल सत्र स्थगित होने की स्तिथि में वह एक अध्यादेश को लागू कर सकता हैं। अध्यादेश को राज्य विधानसभा द्वारा पुन: सौंपे जाने के छह सप्ताह के भीतर अनुमोदित किया जाना चाहिए।। वह किसी भी समय एक अध्यादेश (अनुच्छेद 213) को निरस्त कर सकता हैं।
17. किसी भी धन विधेयक को राज्यपाल की अनुमति मिलने के बाद ही विधान सभा में पेश किया जा सकता है।
18. वह किसी मामले के संबंध में किसी भी कानून के खिलाफ किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा, निलंबित करने, बचाव करने और हटाने के लिए माफ़ी, राहत और छूट दे सकता है और राज्य की कार्यकारी शक्ति का विस्तार कर सकता है। (अनुच्छेद 161)
19. संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राज्यपाल को राष्ट्रपति की परामर्श लेना अनिवार्य है।
महत्वपूर्ण लेख
- 153 - राज्यों के राज्यपाल
- 154 - राज्य की कार्यकारी शक्ति
- 155 - राज्यपाल की नियुक्ति
- 156 - राज्यपाल की पदावधि
- 157 - राज्यपाल के रूप में नियुक्ति के लिए योग्यताएं
- 158 - राज्यपाल के कार्यालय की शर्तें
- 159 – राज्यपाल द्वारा ग्रहण की जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञा
- 161 - माफ़ी या अन्य राहत देने से सम्बंधित राज्यपाल की शक्तियां
- 163 - राज्यपाल को मंत्रिपरिषद द्वारा दी जाने वाली सहायता एवं सलाह
- 165 - राज्य का महाधिवक्ता
- 200 – विधेयकों के लिए स्वीकृति (अर्थात् राज्य विधान मंडल द्वारा पारित बिलों के लिए राज्यपाल की सहमति)
- 201 - राष्ट्रपति के विचार हेतु राज्यपाल द्वारा आरक्षित बिल
- 213 - अध्यादेशों को लागू करने की राज्यपाल की शक्ति
- 217 - उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में राज्यपाल का राष्ट्रपति से परामर्श प्राप्त करना
1. मुख्यमंत्री राज्य का वास्तविक कार्यकारी अधिकारी होता है। वह सरकार का प्रधान प्रमुख होता है।
2. मुख्यमंत्री सहित राज्य के कुल मंत्रियों की संख्या, उस राज्य की विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। हालांकि, किसी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या 12 से भी कम नहीं होनी चाहिए। यह प्रावधान 91वें संशोधन अधिनियम 2003 द्वारा जोड़ा गया था।
3. राज्य विधानसभा की किसी भी सदन का कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी पार्टी से सम्बंधित हो यदि दलबदल में लिप्त होने के कारण बर्खास्त किया जाता है तो उसे मंत्री पद से भी बर्खास्त कर दिया जाता है। यह प्रावधान भी 91वें संशोधन अधिनियम 2003 द्वारा जोड़ा गया था।
राज्य कानूनी स्थिति
राज्य विधानमंडल का संगठन
1. भारत के अधिकांश राज्यों में एक सदनी विधानमंडल है तथा सात राज्यों में द्वसदनी विधानमंडल है। ये राज्य है तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, यूपी, जम्मू और कश्मीर और कर्नाटक।
2. विधानपरिषद ऊपरी सदन है (इसे सेकंड चेम्बर या हाउस ऑफ़ एल्डर्स भी कहते है), जबकि विधानसभा निचला सदन है (इसे फर्स्ट चेम्बर या पोपुलर हाउस भी कहते है) । केवल दिल्ली और पुडुचेरी ऐसे दो केंद्र शासित प्रदेश हैं, जिनमे विधानसभा हैं।
राज्य विधानसभा की संरचना
1. विधानसभा में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शामिल होते हैं। राज्य की जनसँख्या के आधार पर निर्वाचित सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 और न्यूनतम संख्या 60 निर्धारित की गयी है। हालांकि, सिक्किम के सम्बन्ध में यह संख्या 32 है; और गोवा और मिजोरम में यह 40 है।
2. विधान परिषद् के सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं। विधान परिषद् के सदस्यों की अधिकतम संख्या उसी राज्य की विधानसभा की सदस्य संख्या के 1/3 पर निर्धारित की गयी है। इसकी न्यूनतम संख्या 40 तय की गई है। लेकिन जम्मू और कश्मीर एक अपवाद है जहाँ यह संख्या 36 हैं।
3. चुनाव प्रक्रिया: विधान परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या का
- 1/3 राज्य में स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिकाओं आदि के सदस्यों द्वारा चुना जाता हैं
- 1/12 राज्य में रह रहे और तीन साल पुरे कर चूके स्नातकों द्वारा चुना जाता है
- 1/12 राज्य में तीन साल पुरे कर चुके शिक्षकों जिनकी नियुक्ति माध्यमिक विद्यालय से निचले विद्यालय में नहीं रही हो, द्वारा चुना जाता हैंI
- 1/3 राज्य के विधान सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों के बीच से चुना जाता है जो विधानसभा के सदस्य नहीं हैं और
- शेष राज्यपाल द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से नामित किये जाते हैं जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और सामाजिक सेवा में विशेष योगदान या व्यावहारिक अनुभव है I
दोनो सदनों की कार्यावधि
1. लोकसभा की तरह, विधानसभा भी एक स्थायी सदन नहीं है। विधानसभा की कार्यावधि आम चुनाव के बाद पहली बैठक की तारीख से पांच वर्ष तक होती है।
2. राज्यसभा की तरह, विधान परिषद् भी एक स्थायी सदन है, अर्थात इसे भंग नहीं किया जा सकता। लेकिन, इसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष की समाप्ति पर सेवा निर्वीत होते हैं।
विधानसभा की सदस्यता
1. राज्य विधानमंडल के सदस्य के रूप में नामित होने के लिए संविधान में निम्नलिखित योग्यताएं निर्धारित की गयी हैं:
(a) वह भारत का नागरिक हो
(b) वह विधान परिषद् के सदस्य के रूप में नामित होने के लिए उसकी आयु 30 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए और विधानसभा के सदस्य के रूप में नामित होने के लिए उसकी आयु 25 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
2. उसे RPA, 1951 के प्रावधानों के अनुसार दोषी नहीं पाया जाना चाहिए। दलबदल मामले में भी किसी सदस्य को दल बदल विरोधी अधिनियम (10वीं अनुसूची) के अनुसार अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
3. इसके अलावा, वह दिमागी रूप से अवस्थ नहीं होना चाहिए, वह किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए; वह दिवालिया घोषित नहीं हो।
राज्य विधानसभा के पीठासीन अधिकारी
1. विधान मंडल के प्रत्येक सदन के पास अपना पीठासीन अधिकारी होता है। प्रत्येक विधानसभा में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष और प्रत्येक विधान परिषद में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होता है। विधानसभा के लिए अध्यक्षों के एक पैनल को और विधानपरिषद के लिए उपाध्यक्षों के एक पैनल को भी नियुक्त किया जाता है।
2. विधानसभा में सदस्यों के बीच से ही अध्यक्ष को चुना जाता है।
3. अध्यक्ष की तरह, उपाध्यक्ष भी विधानसभा द्वारा अपने सदस्यों के बीच से चुने जाते हैं। उसका चुनाव अध्यक्ष के चुनाव के बाद तय होता है।
4. विधानपरिषद के अध्यक्ष का चुनाव सदस्यों के बीच से ही किया जाता है।
5. स्पीकर (अध्यक्ष) तय करता हैं कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं और इस पर उसका निर्णय अंतिम होता है।
राज्य विधानमंडल से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु
1. राज्य विधानसभा के दो सत्रों के बीच अधिकतम अंतर छह महीने से अधिक नहीं हो सकता है, अर्थात् विधानसभा की बैठक वर्ष में कम से कम दो बार अवश्य होंनी चाहिए।
2. कोरम किसी बैठक का संचालन करने के लिए आवश्यक सदस्यों की न्यूनतम संख्या को कहते है। इसे 10 या उस विशेष सदन में सदस्यों की कुल संख्या का 1/10 भाग होना चाहिए (पीठासीन अधिकारी सहित) ।
3. सदन के सदस्यों के साथ साथ, प्रत्येक मंत्री और राज्य के महाधिवक्ता को किसी भी सदन या इसकी की किसी भी समिति (जिसका वह सदस्य है) की कार्यवाही में बोलने और भाग लेने का अधिकार है लेकिन महाधिवक्ता वोट नहीं दे सकते।
4. विधान परिषद में धन विधेयक पेश नहीं किया जा सकता है। इसे केवल विधानसभा में पेश किया जा सकता है और वह भी राज्यपाल की सिफारिश पर। ऐसे प्रत्येक विधेयक को सरकारी विधेयक माना जाता है और इसे एक मंत्री द्वारा ही पेश किया जा सकता है।
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