- परिचय- लेखांकन या अकांउन्टिग प्रत्येक व्यवसाय की रीढ़ यह एक प्राचीनतम प्रणाली है इसके अन्तर्गत व्यवसाय में होने वाले विभिन्न लेन देन , उधार, माल की खरीददारी , बेचना, पूंजी , लागत, दैनिक लेनदेन, मासिक आय व्यय , वार्षिक आय व्यय, व्यवसाय को होने वाला लाभ या हानि का लेखा जोखा रखा जाता है।
- छोटे बड़े व्यवसाय के बीच में एक एकरूपता और तालमेल बैठाने के लिए निम्न लेखांकन सिद्धान्तों (Generally Accepted Accounting Principles, GAAP) का अनुसरण किया जाता है जो निम्न है
- अस्तित्व सिद्धांत- इसके अनुसार एक व्यवसाय को उसके मालिक से सर्वथा भिन्न रूप में देखा जाता है।
- द्विपक्षीय सिद्धांत- इसके अनुसार प्रत्येक लेन देन के दो पक्ष होते है।
- लेखा अवधि सिद्धांत-इस सिद्धान्त के अनुसार व्यवसाय का जीवन अनंत होता है इसलिए व्यवसाय की प्रगति और तुलना के लिए इस समय को अवधियों में बांटा गया है (सामान्यतः एक लेखा-अवधि एक वर्ष होती है)
अर्थात भारत सरकार के वित्तीय वर्ष के अनुसार लेखा अवधि 1 अप्रैल से 31 मार्च होती है।
- लागत का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार सम्पति के लिए चुकाऐ गए मूल्य को अंकित किया जाता है न की उसकी बाजार मूल्य को ।
- मुद्रा मापन सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार लेनदेन के खाते में उन्हीं को अंकित किया जाता है जिनको मुद्रा के रूप मापा जा सके।
- निरन्तरता का सिद्धांत-इस सिद्धांत के अनुसार व्यापारिक इकाई अनंत समय के लिए बनी रहती है और निकट भविष्य में उसका परिषोधन नहीं होता ।
- उपार्जन का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार आय या व्यय को उसी समय आंक लिया जाता है जब वह कमाया या गंवाया जाता है।
- आगम-व्यय मिलान का सिद्धान्त-यह सिद्धांत लेखा अवधि और उपार्जन के सिद्धांत पर आधारित है इसके अनुसार व्यवसाय मात्र लाभ कमाने के लिए एक निष्चित लेखा अवधि के लिए संगठित किया जाता है।
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